मुझ बे-गुनह के क़त्ल का आहंग कब तलक
आ अब बिना-ए-सुल्ह रखें जंग कब तलक
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(336) Peoples Rate This
नज़र में काबा क्या ठहरे कि याँ दैर
ख़त के आते ही वो मुखड़े की सफ़ाई क्या हुई
कल ऐ आशोब-ए-नाला आज नहीं
ऐ इश्क़ मिरे दोश पे तू बोझ रख अपना
यूँ तो दुनिया में हर इक काम के उस्ताद हैं शैख़
बाँग-ए-मस्जिद से कब उस को सर-ए-मानूसी है
'क़ाएम' हयात-ओ-मर्ग-ए-बुज़-ओ-गाव में हैं नफ़अ
मस्जिद से गर तू शैख़ निकाला हमें तो क्या
लाएक़ वफ़ा के ख़ल्क़ ओ सज़ा-ए-जफ़ा हूँ मैं
'क़ाएम' जो कहें हैं फ़ारसी यार
तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
जहाँ को वो लब-ए-मय-गूँ ख़राब रखते हैं