किस ने रोका है सर-ए-राह-ए-मोहब्बत तुम को
तुम्हें नफ़रत है तो नफ़रत से तुम आओ जाओ
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
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Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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वहशत में निकल आया हूँ इदराक से आगे
तू ख़ुद अपनी मिसाल है वो तो है
एक मज्ज़ूब उदासी मेरे अंदर गुम है
अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला था
कभी जो ख़ाक की तक़रीब-ए-रू-नुमाई हुई
एक उजड़ी हुई हसरत है कि पागल हो कर
ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल
लम्स को छोड़ के ख़ुशबू पे क़नाअ'त नहीं करने वाला
पड़ा हुआ हूँ मैं सज्दे में कह नहीं पाता
रात मैं शाना-ए-इदराक से लग कर सोया
पेड़ सूखा हर्फ़ का और फ़ाख़ताएँ मर गईं