तू ख़ुद अपनी मिसाल है वो तो है
इसी अपनी मिसाल में मुझे मिल
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एक दिन अपना सहीफ़ा मुझ पे नाज़िल हो गया
आँख सहमी हुई डरती हुई देखी गई है
वहशत में निकल आया हूँ इदराक से आगे
किस ने रोका है सर-ए-राह-ए-मोहब्बत तुम को
ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल
पड़ा हुआ हूँ मैं सज्दे में कह नहीं पाता
एक मज्ज़ूब उदासी मेरे अंदर गुम है
मैं अपनी आँख को उस का जहान दे दूँ क्या
ज़मीं का बोझ और उस पर ये आसमान का बोझ
कभी जो ख़ाक की तक़रीब-ए-रू-नुमाई हुई