मैं सामने से उठा और लौ लरज़ने लगी
चराग़ जैसे कोई बात करने वाला था
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किस ने रोका है सर-ए-राह-ए-मोहब्बत तुम को
तू ख़ुद अपनी मिसाल है वो तो है
लम्स को छोड़ के ख़ुशबू पे क़नाअ'त नहीं करने वाला
आईने को तोड़ा है तो मालूम हुआ है
आँख सहमी हुई डरती हुई देखी गई है
एक मज्ज़ूब उदासी मेरे अंदर गुम है
एक उजड़ी हुई हसरत है कि पागल हो कर
ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल
पेड़ सूखा हर्फ़ का और फ़ाख़ताएँ मर गईं
आना जाना है तो क़ामत से तुम आओ जाओ