कातिब-ए-तक़दीर मेरे हक़ में कुछ तहरीर हो

कातिब-ए-तक़दीर मेरे हक़ में कुछ तहरीर हो

रंज हो या शादमानी कुछ तो दामन-गीर हो

आब-रूद-ए-ज़ीस्त के कुछ घूँट ज़हरीले भी हों

मैं ने कब चाहा था हर क़तरा मुझे इक्सीर हो

अहद-ए-आज़ादी से बेहतर क़ैद-ए-ज़़िंदाँ हो तो फिर

तोड़ देने की क़फ़स को क्यूँ कोई तदबीर हो

तेज़ लहरें आ ही जाती हैं मिटाने के लिए

जब लब-ए-साहिल घरौंदा रेत का तामीर हो

ग़म रहे पिन्हाँ दर ओ दीवार दिल के दरमियाँ

क्या ज़रूरी है कि कर्ब-ए-ज़ीस्त की तशहीर हो

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In Hindi By Famous Poet Raghib Akhtar. is written by Raghib Akhtar. Complete Poem in Hindi by Raghib Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.