इक मोहब्बत के सिवा और न कुछ माँगा था
क्या करें ये भी ज़माने को गवारा न हुआ
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न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
मिरी दास्ताँ मुझे ही मिरा दिल सुना के रोए
कहीं से मौत को लाओ कि ग़म की रात कटे
इक छोटा सा था मेरा आशियाँ
किस तरह जीते हैं ये लोग बता दो यारो
किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
जब जब तुम्हें भुलाया तुम और याद आए
किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी
उन को ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते