अजब चीज़ है ये मोहब्बत की बाज़ी
जो हारे वो जीते जो जीते वो हारे
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भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो
ता'ना देते हो मुझे जीने का
है ग़नीमत ये फ़रेब-ए-शब-ए-व'अदा ऐ दिल
चढ़ते हुए दरिया की अलामत नज़र आए
अश्क यूँ बहते हैं सावन की झड़ी हो जैसे
जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी
हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे
गोया थे तो कोई भी नहीं था
ये दौर-ए-मसर्रत ये तेवर तुम्हारे
सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ
मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है
आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ