हैं ए'तिबार से कितने गिरे हुए देखा
इसी ज़माने में क़िस्से इसी ज़माने के
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
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Friends Poetry
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जनाब-ए-शैख़ मय-ख़ाने में बैठे हैं बरहना-सर
झड़ी ऐसी लगा दी है मिरे अश्कों की बारिश ने
तुम्हें परवा न हो मुझ को तो जिंस-ए-दिल की परवा है
ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर
होते ही जवाँ हो गए पाबंद-ए-हिजाब और
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
जताते रहते हैं ये हादसे ज़माने के
मोहतसिब तस्बीह के दानों पे ये गिनता रहा
वफ़ा का बंदा हूँ उल्फ़त का पासदार हूँ मैं
हमेशा ख़ून-ए-दिल रोया हूँ मैं लेकिन सलीक़े से
ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ासिद से बोले
हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले