Ghazals of Salman Akhtar

Ghazals of Salman Akhtar
नामसलमान अख़्तर
अंग्रेज़ी नामSalman Akhtar
जन्म स्थानUSA

ज़ुल्म है तख़्त ताज सन्नाटा

ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें

ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है

वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता

तेग़ खींचे हुए खड़ा क्या है

रह गया कम ही गो सफ़र बाक़ी

मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता

क्या दिखाता है ये सफ़र देखो

कुछ तो मैं भी डरा डरा सा था

किसी क़िस्मत में एक घर निकला

ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम

खुल के बातें करें सुनाएँ सब

कैसे हो क्या है हाल मत पूछो

कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी

कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी

जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे

झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो

जागते में भी ख़्वाब देखे हैं

हम जो पहले कहीं मिले होते

दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं

दर्द जब शाएरी में ढलते हैं

दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ

बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही

आए हैं घर मिरा सजाने दर्द

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