साक़ी फ़ारुक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साक़ी फ़ारुक़ी (page 4)

साक़ी फ़ारुक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साक़ी फ़ारुक़ी (page 4)
नामसाक़ी फ़ारुक़ी
अंग्रेज़ी नामSaqi Faruqi
जन्म की तारीख1936
मौत की तिथि2018
जन्म स्थानLondon

1

ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत

ज़मानों के ख़राबों में उतर कर देख लेता हूँ

यूँ मिरे पास से हो कर न गुज़र जाना था

ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे

ये किस ने भरम अपनी ज़मीं का नहीं रक्खा

ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए

यहीं कहीं पे कभी शोला-कार मैं भी था

वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाए

वो लोग जो ज़िंदा हैं वो मर जाएँगे इक दिन

वो ख़ुश-ख़िराम कि बुर्ज-ए-ज़वाल में न मिला

वो दुख जो सोए हुए हैं उन्हें जगा दूँगा

वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे

वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे

वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है

वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है

उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है

तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते

सुर्ख़ चमन ज़ंजीर किए हैं सब्ज़ समुंदर लाया हूँ

सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर

शहर का शहर हुआ जान का प्यासा कैसा

सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने

सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए

रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई

रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे

रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ

पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला

मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली

मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा

मिट्टी थी ख़फ़ा मौज उठा ले गई हम को

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