फाड़ कर ख़त उस ने क़ासिद से कहा
कोई पैग़ाम ज़बानी और है
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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खोला दरवाज़ा समझ कर मुझ को ग़ैर
बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो
पीते हैं जो शराब मस्जिद में
मज़ा देखा किसी को ऐ परी-रू मुँह लगाने का
अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो
नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए
काली काली घटा बरसती है
रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
जो मुँह से कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ और
जो तुम्हें याद किया करते हैं
एक मुद्दत में बढ़ाया तू ने रब्त