इक अदावत से फ़राग़त नहीं मिलती वर्ना
कौन कहता है मोहब्बत नहीं कर सकते हम
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मिल-जुल कर ईमान ख़ुदा पर ला सकते हैं
ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ
ऐसी वैसी पे क़नाअ'त नहीं कर सकते हम
हवा चलती है दम ठहरा हुआ है
ये जो तालाब है दरिया था कभी
ख़्वाब-ज़ादों का दुख ज़मीनी है
ऐसी वैसी पे क़नाअत नहीं कर सकते हम
जहाँ चौखट है वाँ ज़ीना था पहले
ख़्वाब में मंज़र रह जाता है
मकीन को मकान से निकालिए
ख़ुद से अपना आप मिलाया जा सकता है
नज़र आते थे हम इक दूसरे को