सुना है कोई दीवाना यहाँ पर
रहा करता था वीराने से पहले
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जब तआ'रुफ़ से बे-नियाज़ था मैं
मकीन को मकान से निकालिए
इक अदावत से फ़राग़त नहीं मिलती वर्ना
भँवर में मशवरे पानी से लेता हूँ
ऐसी वैसी पे क़नाअ'त नहीं कर सकते हम
ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ
जहाँ चौखट है वाँ ज़ीना था पहले
ख़्वाब में मंज़र रह जाता है
हवा चलती है दम ठहरा हुआ है
कभी होंटों पे ऐसा लम्स अपनी आँख खोले
फिर ऐसा मोड़ इस क़िस्से में आया
ख़्वाब-ज़ादों का दुख ज़मीनी है