मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
इक अज़दहा चराग़ की लौ को निगल गया
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अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
अच्छा सा कोई सपना देखो और मुझे देखो
इतने बहुत से रंग
गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
नई नई सी आग है या फिर कौन है वो
इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
क़सम इस आग और पानी की
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा