Ghazals of Saud Usmani

Ghazals of Saud Usmani
नामसऊद उस्मानी
अंग्रेज़ी नामSaud Usmani
जन्म की तारीख1958
जन्म स्थानKarachi

शाम से गहरा चाँद से उजला एक ख़याल

नुमू-पज़ीर है इक दश्त-ए-बे-नुमू मुझ में

नज़रों की तरह लोग नज़ारे की तरह हम

नज़र के भेद सब अहल-ए-नज़र समझते हैं

मता-ए-हर्फ़ भी ख़ुश्बू के मा-सिवा क्या है

कुछ और अकेले हुए हम घर से निकल कर

कभी सराब करेगा कभी ग़ुबार करेगा

इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी

हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया

हर रोज़ इम्तिहाँ से गुज़ारा तो मैं गया

हर एक लम्हा-ए-मौजूद इंतिज़ार में था

हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को

गुज़र चली है शब-ए-दिल-फ़िगार आख़िरी बार

एक किताब सिरहाने रख दी एक चराग़ सितारा किया

दीवार पे रक्खा हुआ मिट्टी का दिया मैं

दिल में रक्खे हुए आँखों में बसाए हुए शख़्स

बिछड़ गया है तो अब उस से कुछ गिला भी नहीं

बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी

अपना गिर्या किस के कानों तक जाता है

अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया

अजब ख़जालत-ए-जाँ है नज़र तक आई हुई

आँखों में एक ख़्वाब पस-ए-ख़्वाब और है

आँखों का भरम नहीं रहा है

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