बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
क़ज़ा की तरह पता पूछती नहीं आती
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नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे
वो मज़ा रखते हैं कुछ ताज़ा फ़साने अपने
फ़ित्ने जो कई शक्ल-ए-करिश्मात उठे हैं
पाई न कोई मंज़िल पहुँचीं न कहीं राहें
तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते
इधर मौसम की ये ख़ुश-एहतिमामी
जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ
हर-चंद कि साग़र की तरह जोश में रहिए
मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर
दुनिया ही की राह पे आख़िर रफ़्ता रफ़्ता आना होगा
उम्मीद के उफ़ुक़ से न उट्ठा ग़ुबार तक