Ghazals of Shad Lakhnavi
नाम | शाद लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shad Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1805 |
मौत की तिथि | 1899 |
ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी
ये सनम भी घटोर कितने हैं
वो मय-परस्त हूँ बदली न जब नज़र आई
वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को
उस ने अफ़्शाँ जो चुनी रात को तन्हा हो कर
टूटे जो दाँत मुँह की शबाहत बिगड़ गई
तू वो हिन्दोस्ताँ में लाला है
तस्वीर मिरी है अक्स तिरा तू और नहीं मैं और नहीं
सुना हम को आते जो अंदर से बाहर
शर्तें जो बंदगी में लगाना रवा हुआ
शक्ल-ए-मिज़्गाँ न ख़ार की सी है
शगुफ़्ता होते ही मुरझा गई कली अफ़सोस
सदा रंग-ए-मीना चमकता रहा
क़ौल उस दरोग़-गो का कोई भी सच हुआ है
पास उस बुत के जो ग़ैर आ के कोई बैठ गया
नज़रों से गुलों की नौ-निहालो
ना-तवाँ वो हूँ निगाहों में समा ही न सकूँ
न जान कर गुल-ए-बाज़ी बहुत उछाल के फेंक
मिस्ल-ए-ख़ंजर लेसान रखते हैं
मिरी बे-रिश्ता-दिली से उसे मज़ा मिल जाए
मैं वो बे-चारा हूँ जिस से बे-कसी मानूस है
लुंज वो पा-ए-तलब हूँ कहीं जा ही न सकूँ
लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है
लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
क्या ये बुत बैठेंगे ख़ुदा बन कर
क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और
ख़ुदा ही उस चुप की दाद देगा कि तुर्बतें रौंदे डालते हैं
ख़त देखिए दीदार की सूझी ये नई है
ख़लिश-ए-ख़ार हो वहशत में कि ग़म टूट पड़े
कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के