इस्लाम और कुफ़्र हमारा ही नाम है
काबा कुनिश्त दोनों में अपना मक़ाम है
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इश्क़ के अक़्लीम में चाल-ओ-चलन कुछ और है
अजब तू ने जल्वा दिखाया मुझे
देख कर मुझ को तुझे क्यूँ है तहय्युर नासेह
है दिल को मेरे आरिज़-ए-जानाँ से इर्तिबात
है अयाँ रू-ए-यार आँखों में
सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़
लश्कर-ए-इश्क़ आ पड़ा है मुल्क-ए-दिल पर टूट टूट
मुझे साक़ी-ए-चश्म-ए-यार ने अजब एक जाम पिला दिया
बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा
इस दिल में अगर जल्वा-ए-दिल-दार न होता