काफ़िर-ए-इश्क़ हुआ जब से मैं इस दहर में हूँ
है मिरे कुफ़्र से ये दीन और ईमाँ नाज़ाँ
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उट्ठी है जब से दिल में मिरे इश्क़ की तरंग
इस्लाम और कुफ़्र हमारा ही नाम है
अजब तू ने जल्वा दिखाया मुझे
देख कर मुझ को तुझे क्यूँ है तहय्युर नासेह
बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा
ब-चशम-ए-हक़ीक़त जहाँ देखता हूँ
दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़
शक्ल-ए-जानाना जा-ब-जा हैं हम
सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़
अफ़्साना मिरे दिल का दिल-आज़ार से कह दो