सीने में बे-क़रार हैं मुर्दा मोहब्बतें
मुमकिन है ये चराग़ कभी ख़ुद ही जल पड़े
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
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Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
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कुछ तेरे सबब थी मिरे पहलू में हरारत
दिल से ये कह रहा हूँ ज़रा और देख ले
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे
उम्र भर अपने गिरेबाँ से उलझने वाले
ज़मीन नाव मिरी बादबाँ मिरे अफ़्लाक
आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते
लेते हैं लोग साँस भी अब एहतियात से
ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ
रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे
मैं गुल-ए-ख़ुश्क हूँ लम्हे में बिखर सकता हूँ