अभी अरमान कुछ बाक़ी हैं दिल में
मुझे फिर आज़माया जा रहा है
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गुरेज़-पा
क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है
इंदिमाल
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
आग के दरमियान से निकला
बस इक शुआ-ए-नूर से साया सिमट गया
कोई इस दिल का हाल क्या जाने
वक़्त ने ये कहा है रुक रुक कर
प्यार की जोत से घर घर है चराग़ाँ वर्ना
मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो
ख़िरद फ़रेब-ए-नज़ारों की कोई बात करो