आलम में जिस की धूम थी उस शाहकार पर
दीमक ने जो लिखे कभी वो तब्सिरे भी देख
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(589) Peoples Rate This
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे
क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है
क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त
अभी अरमान कुछ बाक़ी हैं दिल में
'शकेब' अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफ़ी है
ख़्वाब-ए-गुल-रंग के अंजाम पे रोना आया
दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है
गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था
जो मोतियों की तलब ने कभी उदास किया
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
आ के पत्थर तो मिरे सेहन में दो-चार गिरे
इश्क़ के ग़म-गुसार हैं हम लोग