दिल भी दामन है फैलाओ सर-ए-शब
मोती सी बारिश बरसाओ सर-ए-शब
जब जोश-ए-सैल से मुनव्वर हो दिमाग़
इन कड़वी बूँदों में नहाओ सर-ए-शब
Rahat Indori
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दिन-भर की दौड़ रात के औहाम वसवसे
जो उतरा फिर न उभरा कह रहा है
हर जल्वा-ए-हुस्न बे-वतन है
शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो
दर-पा-ए-अजल
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
मौज-ए-दरिया को पिएँ क्या ग़म-ए-ख़म्याज़ा करें
लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम
देखिए बे-बदनी कौन कहेगा क़ातिल है
शोर थमने के बाद
माह-ए-मुनीर
उन का ख़याल हर तरफ़ उन का जमाल हर तरफ़