किसी के साथ अब साया नहीं है
कोई भी आदमी पूरा नहीं है
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बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
आँखों में रात ख़्वाब का ख़ंजर उतर गया
क्या ख़बर थी आतिशीं आब-ओ-हवा हो जाऊँगा
आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
धूल उड़ती है धूप बैठी है
आज हर सम्त भागते हैं लोग
कभी जंगल कभी सहरा कभी दरिया लिख्खा