तूफ़ान-ए-नूह लाने से ऐ चश्म फ़ाएदा
दो अश्क भी बहुत हैं अगर कुछ असर करें
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कम-फ़हम हैं तो कम हैं परेशानियों में हम
कुछ दर्द है मुतरिबों की लय में
शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें
मर गए हैं जो हिज्र-ए-यार में हम
कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
इधर माइल कहाँ वो मह-जबीं है
गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया
फ़साने अपनी मोहब्बत के सच हैं पर कुछ कुछ
उड़ती सी 'शेफ़्ता' की ख़बर कुछ सुनी है आज
तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में
बे-उज़्र वो कर लेते हैं व'अदा ये समझ कर