आग़ाज़ है कुछ तरह न अंजाम तिरा
बंदों पे हमेशा लुत्फ़ है आम तिरा
मंदिर में है हर ख़ुदा है तू मस्जिद में
जपते हैं शैख़-ओ-बरहमन नाम तिरा
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सती
पदमनी
गंगा जी
फ़क़ीरों पे अपने करम इक ज़रा कर
इस बाग़ में किस को फूल चुनते देखा
ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है
गुलज़ार-ए-वतन
काफ़ूर है दिल-जलों को तनवीर-ए-सहर
किसी मस्त-ए-ख़्वाब का है अबस इंतिज़ार सो जा
इस बहर में सैकड़ों ही लंगर टूटे
बुलबुल ओ परवाना
शब-ए-विसाल मज़ा दे रही है 'तू' तेरी