इस बाग़ में किस का फूल चुनते देखा
सर ख़ाक पे बाग़बाँ को धुनते देखा
बुलबुल ने तड़प के जान दी ऐ सय्याद
नाला न यहाँ किसी का सुनते देखा
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बुलबुल ओ परवाना
शब-ए-विसाल मज़ा दे रही है 'तू' तेरी
काफ़ूर है दिल-जलों को तनवीर-ए-सहर
इस बहर में सैकड़ों ही लंगर टूटे
किसी मस्त-ए-ख़्वाब का है अबस इंतिज़ार सो जा
बजाए मय दिया पानी का इक गिलास मुझे
पदमनी
आग़ाज़ है कुछ तिरा न अंजाम तिरा
गुलज़ार-ए-वतन
फ़क़ीरों पे अपने करम इक ज़रा कर
गंगा जी
ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है