दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
ऐ ग़म-ए-हस्ती हमें दुनिया पसंद आई बहुत
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जवाज़
गडमड
पुरानी मोटर
जब्र ओ जहालत
ग़रीब-ख़ाना हमेशा से जेल-ख़ाना है
ज़िंदगी है मुख़्तलिफ़ जज़्बों की हमवारी का नाम
अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ ईं क़दर मुझे
हज़रत-ए-इक़बाल का शाहीं तो हम से उड़ चुका
उन के फाटक में यूँ खड़े हैं हम
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
औरतों की असेंबली