ज़न और पिसर और पिदर और है माँ और
मुर्ग़ी की ज़बाँ और है मुर्ग़े की अज़ाँ और
घर रहते तो दोनों हैं इसी एक मकाँ में
बीवी का जहाँ और है शौहर का जहाँ और
Ahmad Faraz
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Wasi Shah
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हँस मगर हँसने से पहले सोच ले
ख़ुलासा ये मिरे हालात का है
जुनूँ पे जब्र-ए-ख़िरद जब भी होश्यार हुआ
गडमड
असास
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
साहब की बिपता
तहलील
मैं बताता हूँ ज़वाल-ए-अहल-ए-यूरोप का प्लान
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
हम न्यूट्रल हैं ख़ारजा हिकमत के बाब में
अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते