शहर को रौनक़ मिले है गाँव से
पेड़ की ताक़त न जांचो छाँव से
महज़ क़द से शख़्स क़द-आवर नहीं
अपनी क़ामत ढूँढ अपने पाँव से
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
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चीज़ मिलती है ज़र्फ़ की हद तक
ख़ुलासा ये मिरे हालात का है
जवाज़
इक रेल के सफ़र की तस्वीर खींचता हूँ
जुनूँ पे जब्र-ए-ख़िरद जब भी होश्यार हुआ
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
पुरानी मोटर
बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं
दीवार रंग
औरतों की असेंबली
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं