लाएक़-ए-अफ़सोस है पर बाइस-ए-हैरत नहीं
कामयाबी उस की इबरत-नाक नाकामी के ब'अद
कितना शातिर है सियासत-दान अपने मुल्क का
और भी मक़्बूल हो जाता है बद-नामी के ब'अद
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मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ
तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
जवाज़
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ ईं क़दर मुझे
ख़ुदा-बंदा
मिलावट
असास
मेराज-ए-वफ़ा
अपने ज़र्फ़ अपनी तलब अपनी नज़र की बात है
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं