मिल भी जाए शहरियत अमरीका की तो क्या हुआ
फिर भी हम लाहौर के हैं फिर भी गुलबरगे के हैं
डॉक्टर भी हो गए एन्जनिर भी हो गए
गंदुमी है रंग अगर तो दूसरे दर्जे के हैं
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
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मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ
मिलावट
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
उधार
शौक़ से लख़्त-ए-जिगर नूर-ए-नज़र पैदा करो
ख़ुदा-बंदा
ग़रीब-ख़ाना हमेशा से जेल-ख़ाना है
अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
मैं बताता हूँ ज़वाल-ए-अहल-ए-यूरोप का प्लान
चीज़ मिलती है ज़र्फ़ की हद तक
उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद