अगरचे नम तो कम है उन के अंदर
मगर बादल बरस जाते बहुत हैं
हमें तो जितने अमरीकन मिले हैं
समझते कम हैं समझाते बहुत हैं
Jaun Eliya
Gulzar
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Parveen Shakir
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दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रा'नाई बहुत
बद-नामी के ब'अद
अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
जब्र ओ जहालत
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
जुनूँ पे जब्र-ए-ख़िरद जब भी होश्यार हुआ
औरतों की असेंबली
शौक़ से लख़्त-ए-जिगर नूर-ए-नज़र पैदा करो
ज़िंदगी है मुख़्तलिफ़ जज़्बों की हमवारी का नाम
गा रहा हूँ ख़ामुशी में दर्द के नग़्मात मैं
साहब की बिपता