छोटी और बड़ी चीज़ें रफ़्त-ए-ज़िंदगानी हैं
घर में देगचों के साथ देगची भी होती है
अहमक़ आदमी अगर वज़ीर बन गया तो क्या
आली-शान बंगलों में छिपकिली भी होती है
Javed Akhtar
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फ़र्द
हम न्यूट्रल हैं ख़ारजा हिकमत के बाब में
ग़रीब-ख़ाना हमेशा से जेल-ख़ाना है
जुनूँ पे जब्र-ए-ख़िरद जब भी होश्यार हुआ
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
उन के फाटक में यूँ खड़े हैं हम
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
तहलील
औरतों की असेंबली
बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं
मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ
जब्र ओ जहालत