जब ख़राबी सरों में आती है
फिर तबाही घरों में आती है
जैसे शब फ़िल्म देखने के ब'अद
नींद भी पिक्चरों में आती है
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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अपने ज़र्फ़ अपनी तलब अपनी नज़र की बात है
इक रेल के सफ़र की तस्वीर खींचता हूँ
जुनूँ पे जब्र-ए-ख़िरद जब भी होश्यार हुआ
अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ ईं क़दर मुझे
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
ख़राबी
मीरज़ा 'ग़ालिब'
ज़िंदगी है मुख़्तलिफ़ जज़्बों की हमवारी का नाम
हज़रत-ए-इक़बाल का शाहीं तो हम से उड़ चुका
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
गा रहा हूँ ख़ामुशी में दर्द के नग़्मात मैं