अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
इस तमाशे से बहलता नहीं तू भी मैं भी
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(591) Peoples Rate This
दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी
याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं
ज़र का बंदा हो कि महरूमी का मारा हुआ शख़्स
रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
कोई तासीर तो है इस की नवा में ऐसी
यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को