उसे बहिश्त के ज़िंदाँ में भेज देना तुम
गुनाहगार-ए-मोहब्बत को ये सज़ा देना
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क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
फ़लक बेदाद करता है जो जौर ईजाद करते हैं
फूल अपने वस्फ़ सुनते हैं उस ख़ुश-नसीब से
भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ
मौत आई मुझे कूचे में तिरे जाने से
जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है
पत्थर नज़र थी वाइ'ज़-ए-ख़ाना-ख़राब की
आसमानों पर भी हैं चर्चे हुस्न-ए-आलमगीर के
क्या हुआ उस ने जो आशिक़ से जफ़ाकारी की
शरीर तेरी तरह आँख भी तिरी होगी
वहाँ अब जा के देखें हम से क्या इरशाद करते हैं
जुर्म इतने कर चला हूँ हश्र तक लिक्खेंगे रोज़