मैं अब उस हर्फ़ से कतरा रही हूँ
जो मेरी बात का हासिल रहा है
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समुंदर हो तो उस में डूब जाना भी रवा है
दरिया की रवानी वही दहशत भी वही है
एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो
इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते
रस्ते से मिरी जंग भी जारी है अभी तक
हम ने किसी को अहद-ए-वफ़ा से रिहा किया
दौलत-ए-दर्द समेटो कि बिखरने को है
हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं
जिस सम्त की हवा है उसी सम्त चल पड़ें
उफ़ुक़ तक मेरा सहरा खिल रहा है
अपनी निगाह पर भी करूँ ए'तिबार क्या
उस के शिकस्ता वार का भी रख लिया भरम