उस के शिकस्ता वार का भी रख लिया भरम
ये क़र्ज़ हम ने ज़ख़्म की सूरत अदा किया
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कोई पूछे मिरे महताब से मेरे सितारों से
एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो
रस्ते से मिरी जंग भी जारी है अभी तक
इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था
इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते
अगर इतनी मुक़द्दम थी ज़रूरत रौशनी की
समुंदर हो तो उस में डूब जाना भी रवा है
क्यूँ ढूँडने निकले हैं नए ग़म का ख़ज़ीना
मुसलसल एक ही तस्वीर चश्म-ए-तर में रही
दौलत-ए-दर्द समेटो कि बिखरने को है
ख़ुशी के दौर तो मेहमाँ थे आते जाते रहे