Ghazals of Zafar Gorakhpuri

Ghazals of Zafar Gorakhpuri
नामज़फ़र गोरखपुरी
अंग्रेज़ी नामZafar Gorakhpuri
जन्म की तारीख1935

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

तो फिर मैं क्या अगर अन्फ़ास के सब तार गुम उस में

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी

पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते क्या हो

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझ को पाने के लिए

मिरा क़लम मिरे जज़्बात माँगने वाले

कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं

जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी

जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे

जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी

इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है

एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे

दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा

अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का

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