ज़फ़र इक़बाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र इक़बाल (page 7)

ज़फ़र इक़बाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र इक़बाल (page 7)
नामज़फ़र इक़बाल
अंग्रेज़ी नामZafar Iqbal
जन्म की तारीख1933
जन्म स्थानOkara, Pakistan

फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर

पता चला कोई गिर्दाब से गुज़रते हुए

परियों ऐसा रूप है जिस का लड़कों ऐसा नाँव

पैदा ये ग़ुबार क्यूँ हुआ है

पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है

नहीं कि तेरे इशारे नहीं समझता हूँ

नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई

न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है

न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है

न कोई बात कहनी है न कोई काम करना है

न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं

मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ

मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया

मिरे निशान बहुत हैं जहाँ भी होता हूँ

मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था

मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में

मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं

मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने

लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है

लहर की तरह किनारे से उछल जाना है

लब पे तकरीम-ए-तमन्ना-ए-सुबुक-पाई है

कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है

कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था

कुछ सबब ही न बने बात बढ़ा देने का

कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था

कुछ दिनों से जो तबीअत मिरी यकसू कम है

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