Ghazals of Zaheer Dehlvi (page 2)
नाम | ज़हीर देहलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zaheer Dehlvi |
जन्म की तारीख | 1825 |
मौत की तिथि | 1911 |
जन्म स्थान | Delhi |
हसीनों में रुत्बा दो-बाला है तेरा
हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार
हम-नशीं उन के तरफ़-दार बने बैठे हैं
हाए उस शोख़ का अंदाज़ से आना शब-ए-वस्ल
हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है
गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या
गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा
गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
फ़ित्ना-गर शोख़ी-ए-हया कब तक
दिल को दार-उस-सुरूर कहते हैं
दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ
दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा
दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़
बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है
बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
भूल कर हरगिज़ न लेते हम ज़बाँ से नाम-ए-इश्क़
बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया
ऐसे की मोहब्बत को मोहब्बत न कहेंगे
ऐ मेहरबाँ है गर यही सूरत निबाह की
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या