गुदगुदाया जो उन्हें नाम किसी का ले कर
मुस्कुराने लगे वो मुँह पे दुपट्टा ले कर
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बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया
मिलने का नहीं रिज़्क़-ए-मुक़द्दर से सिवा और
कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़
वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या
ऐसे की मोहब्बत को मोहब्बत न कहेंगे
कुछ शिकवे-गिले होते कुछ तैश सिवा होता
गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या
रंज राहत-असर न हो जाए
मुरादें कोई पाता है किसी की जान जाती है
सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की