बातों में तो इख़्तियार शीरीनी कर
इज़हार-ए-नियाज़-ओ-इज्ज़-ओ-मिस्कीनी कर
ख़्वाहिश हो जो आँखों में जगह पाने की
ऐ मर्दुम-ए-दीदा तर्क ख़ुद-बीनी कर
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(914) Peoples Rate This
सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन
कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
हज़ारों तरह अपना दर्द हम इस को सुनाते हैं
क़ैद से पहले भी आज़ादी मिरी ख़तरे में थी
उल्फ़त में मरे तो ज़िंदगी मिलती है
ज़ालिम दम-ए-नज़अ न आया अफ़सोस
हज़ारों तरह अपना दर्द हम उस को सुनाते हैं
जहाँ अपना क़िस्सा सुनाना पड़ा
इश्क़ पाबंद-ए-वफ़ा है न कि पाबंद-ए-रुसूम