Heart Broken Poetry of Abbas Tabish (page 3)
नाम | अब्बास ताबिश |
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अंग्रेज़ी नाम | Abbas Tabish |
जन्म की तारीख | 1961 |
जन्म स्थान | Lahore |
नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है
न तुझ से है न गिला आसमान से होगा
मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं
मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था
मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं
मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था
मैं अपने इश्क़ को ख़ुश-एहतिमाम करता हुआ
कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है
कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए
जो भी मिन-जुम्ला-ए-अश्जार नहीं हो सकता
झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का
जहान-ए-मर्ग-ए-सदा में इक और सिलसिला ख़त्म हो गया है
इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं
इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी
हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है
हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है
हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता
फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
एक क़दम तेग़ पे और एक शरर पर रक्खा
एक मुश्किल सी बहर-तौर बनी होती है
डूब कर भी न पड़ा फ़र्क़ गिराँ-जानी में
दिल दुखों के हिसार में आया
दी है वहशत तो ये वहशत ही मुसलसल हो जाए
दश्त-ए-हैरत में सबील-ए-तिश्नगी बन जाइए
दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं
दम-ए-सुख़न ही तबीअ'त लहू लहू की जाए
दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता
चराग़-ए-सुब्ह जला कोई ना-शनासी में
चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया
चाँद का पत्थर बाँध के तन से उतरी मंज़र-ए-ख़्वाब में चुप