Hope Poetry of Abbas Tabish

Hope Poetry of Abbas Tabish
नामअब्बास ताबिश
अंग्रेज़ी नामAbbas Tabish
जन्म की तारीख1961
जन्म स्थानLahore

मैं अपने आप में गहरा उतर गया शायद

बैठे रहने से तो लौ देते नहीं ये जिस्म ओ जाँ

अभी तो घर में न बैठें कहो बुज़ुर्गों से

वो हँसती है तो उस के हाथ रोते हैं

अधूरी नज़्म

अभी उस की ज़रूरत थी

ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

ये देख मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिरे आगे

वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता

तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया

शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना

शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर

शजर समझ के मिरा एहतिराम करते हैं

साँस के हम-राह शो'ले की लपक आने को है

सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है

रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया

नींदों का एक आलम-ए-असबाब और है

निगाह-ए-अव्वलीं का है तक़ाज़ा देखते रहना

मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं

मैं अपने इश्क़ को ख़ुश-एहतिमाम करता हुआ

मह-रुख़ जो घरों से कभी बाहर निकल आए

कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है

खा के सूखी रोटियाँ पानी के साथ

कस कर बाँधी गई रगों में दिल की गिरह तो ढीली है

इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं

हवा-ए-मौसम-ए-गुल से लहू लहू तुम थे

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