तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करे
बार बार एक ही चेहरा नहीं देखा जाता
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इस का मतलब है यहाँ अब कोई आएगा ज़रूर
सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है
याद कर कर के उसे वक़्त गुज़ारा जाए
तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं
पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था
शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर
मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं
ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
अजब सौदा-ए-वहशत है दिल-ए-ख़ुद-सर में रहता है
मुझ से तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआ
वक़्त लफ़्ज़ों से बनाई हुई चादर जैसा
अँदेशा-ए-विसाल की एक नज़्म