ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं
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तिरी मोहब्बत में गुमरही का अजब नशा था
शब की शब कोई न शर्मिंदा-ए-रुख़स्त ठहरे
मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है
न तुझ से है न गिला आसमान से होगा
वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता
दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं
दम-ए-सुख़न ही तबीअ'त लहू लहू की जाए
परों में शाम ढलती है
इल्तिजाएँ कर के माँगी थी मोहब्बत की कसक
पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था
इक मोहब्बत ही पे मौक़ूफ़ नहीं है 'ताबिश'
दे इसे भी फ़रोग़-ए-हुस्न की भीक