चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे
आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया
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कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा
अपने माहौल से कुछ यूँ भी तो घबराए न थे
हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है
काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी
उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया
मुझे बतलाईए अब कौन सी जीने की सूरत है
एक पैकर यूँ चमक उट्ठा है मेरे ध्यान में
मैं अपने दिल में नई ख़्वाहिशें सजाए हुए
मैं फ़क़त इस जुर्म में दुनिया में रुस्वा हो गया
गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया