पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वो
इस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए
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जब्र को इख़्तियार कौन करे
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया
गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
मैं ख़ुदी में मुब्तिला ख़ुद को मिटाने के लिए
उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले
इस लिए कहते थे देखा मुँह लगाने का मज़ा
उर्यां ही रहे लाश ग़रीब-उल-वतनी में
क्या कर रहे हो ज़ुल्म करो राह राह का
इक बात कहें तुम से ख़फ़ा तो नहीं होगे